क्यों चिंतित हो सम्हलो प्यारी बह रही आंस क्यों आंखों से...
जीवन तो है अब बदल गया उन काले झंझावातों से...
तुम केवल श्रद्धा नहीं रही अब, तुम पियूष सी पावन हो.....
इस युग की मंगल आरति हो दुनिया की जेहन सुधारक हो....
तुम खुद समय की पालक हो सतचंडी तन तैयार करो....
मां दुर्गा काली बन जाओ इन असुरों का संघार करो...
देवो के और दानवों के युद्धों में सदा ही साथ दिया ....
जब जब ये दानव बरसे हैं, तुमने इनका सर्बनाश किया...
जब आज लगे धक्के कोई मत आंखों में आंसू लाओ...
फिर वही रूप तैयार करो सतचंडी काली बन जाओ....
अट्ठहास करके गरजो फिर सीने पर तन चढ़ जाओ,
टांगे फाड़ फेंक डालो और कलेजा खा जाओ....
अब आंस से भीगी चादर पर खैरात नहीं मरना होगा.....
तुमको अपने जज्बातों से ऐलाने जंग करना होगा...